सरसों की खेती करने वाले किसानों के लिए खास जानकारी जो उन्हें कीड़ों और बीमारियों से बचाने में मदद करेंगी

सरसों की खेती करने वाले किसानों के लिए खास जानकारी जो उन्हें कीड़ों और बीमारियों से बचाने में मदद करेंगी

फुलिया या डाउनी मिल्डू इस रोग में पत्तियों की निचली सतह पर भूरे धब्बे बन जाते हैं और धब्बों का ऊपरी भाग पीला हो जाता है। एनसीआर समेत पूरे उत्तर भारत में शीतलहर के साथ कड़ाके की ठंड पड़ रही है। साथ ही पाला भी गिर रहा है. इससे आम लोगों के साथ-साथ पशु-पक्षियों और फसलों का हाल बेहाल हो गया है. वहीं शीतलहर और पाले के कारण सरसों की खेती पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है. इससे सरसों के उत्पादन पर असर पड़ सकता है. दरअसल, सरसों एक ऐसी फसल है जिसमें शीतलहर के कारण कई तरह की बीमारियां अपने आप पैदा हो जाती हैं. तो आइए आज जानते हैं सरसों की फसल में होने वाले रोग और उनके लक्षणों के बारे में।

अल्टरनेरिया ब्लाइट

कृषि महाविद्यालय के डीन डॉ. एसके पाहुजा ने बताया कि अल्टरनेरिया ब्लाइट सरसों की फसल में लगने वाला प्रमुख रोग है। इस रोग में पौधे की पत्तियों और फलियों पर गोल और भूरे धब्बे बन जाते हैं। कुछ दिनों के बाद इन धब्बों का रंग काला हो जाता है और पत्तियों पर गोल छल्ले दिखाई देने लगते हैं।

                                                        crop of mustard

फुलिया या डाउनी मिल्ड्यू

इस रोग में पत्तियों की निचली सतह पर भूरे धब्बे बन जाते हैं और धब्बों का ऊपरी भाग पीला पड़ जाता है। इन धब्बों पर एक पाउडर सा दिखने लगता है सरसों की फसल को कीड़ों और बीमारियों से काफी नुकसान होता है जिससे इसकी पैदावार काफी कम हो जाती है और किसानों पर आर्थिक बोझ बढ़ जाता है. यदि समय रहते इन रोगों एवं कीटों पर नियंत्रण कर लिया जाए तो सरसों का उत्पादन बढ़ाया जा सकता है।

सरसों की फसल में लगने वाले रोगों से अपनी फसल को बचाएं

योजना का नाम
सरसों की फसल को रोग से कैसे बचाएंगे
सरसों की फसल अधिक पैदावार होती है इन राज्यों में
सबसे अधिक पैदावार सरसों की राजस्थान में होती है उत्तर प्रदेश हरियाणा पंजाब आदि राज्यों में सरसों की फसल होती है
सरसों की खेती में अधिक कीटनाशकफसल को बर्बाद करते हैं
पत्तियों पर छोटे, हल्के काले, गोल धब्बे बनते हैं। धब्बों में गोल छल्ले स्पष्ट दिखाई देते हैं।
पेंटेड बग कीट का प्रकोप सरसों के फलों के अंकुरण के तुरंत बाद होता है।
यह कीट फसल की 7-10 दिन की छोटी अवस्था में पत्तियों का रस चूसकर फसल को पूरी तरह नष्ट कर देता है।
यदि सरसों की फसल की प्रारंभिक अवस्था में पेंटेड बग कीट का प्रकोप हो
डाइमेथोएट 30 ईसी 1 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें
यह कीट सरसों की फसल के अंकुरण के 25-30 दिन के अन्दर सर्वाधिक क्षति पहुंचाता है।
आरा मक्खी का अधिक प्रकोप होने पर पत्तियों के स्थान पर शिराओं का जाल ही रह जाता है।
इसके 50 दिन बाद रोकथाम के लिए कार्बोन्डिज़म 0.1% (1 ग्राम दवा प्रति लीटर पानी) का प्रयोग करें।
स्प्रे. यदि आवश्यकता हो तो 20 दिन बाद पुनः छिड़काव करें
पत्तियों की निचली सतह पर गोल सफेद फफोले दिखाई देते हैं।
बाद में सरसों के फूलों एवं फलियों की अत्यधिक वृद्धि हो जाती है तथा फूलों एवं पत्तियों की विकृत वृद्धि देखी जाती है।
पेंटेड बग कीट के शिशु एवं वयस्क दोनों ही पत्तियों का रस चूसकर हानि पहुंचाते हैं।
जिसके कारण पौधे कमजोर होकर पीले पड़ जाते हैं और सूख जाते हैं।

सफेद जंग

सरसों के इस रोग में पत्तियों पर छोटे-छोटे सफेद और क्रीम रंग के धब्बे दिखाई देने लगते हैं। इससे तने और फूल अनियमित आकार के हो जाते हैं, जिसे स्टैग हेड कहते हैं। यह रोग पछेती फसलों में अधिक होता है।

तना सड़न

तना सड़न रोग में तनों पर लंबे भूरे पानी के धब्बे बन जाते हैं। जिस पर बाद में सफेद फंगस बन जाता है. ये लक्षण पत्तियों और टहनियों पर भी देखे जा सकते हैं. इस रोग का अधिक आक्रमण फूल आने या फलियाँ बनने के बाद देखने को मिलता है, जिससे तने टूट जाते हैं और तने के अंदर काले रंग की पिंडियाँ बन जाती हैं।

ऐसे रोकें सरसों की फसल से बीमारियों

पादप रोग विभाग के अध्यक्ष डॉ. एचएस सहारण के अनुसार सरसों में अल्टरनेरिया ब्लाइट, फुलिया और सफेद रतुआ रोग के लक्षण दिखते ही 600 ग्राम मैन्कोजेब (डाइथेन या इंडोफिल एम 45) 250 से 300 लीटर में मिलाएं। 15 प्रति एकड़ की दर से पानी। दिन के अंतराल पर 2 बार छिड़काव करें। इसी प्रकार तना सड़न रोग के लिए बीज को 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम (बाविस्टिन) प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें। जिन क्षेत्रों में तना सड़न रोग का प्रकोप प्रतिवर्ष होता है, वहां बुआई के 45 से 50 दिन तथा 65 से 70 दिन बाद कार्बेन्डाजिम 0.1 प्रतिशत की दर से दो बार छिड़काव करें।

तुलसीता (डाउनी मिल्ड्यू) रोग के लक्षण

पत्तियों की निचली परत पर बैंगनी-भूरे रंग के धब्बे बनते हैं जो बाद में बड़े हो जाते हैं। यहीं से रोगज़नक़ की बैंगनी रंग की वृद्धि कपास की तरह दिखाई देती है। रोग की तीव्र अवस्था में फूलों की कलियाँ नष्ट हो जाती हैं और फूलों के अंग बड़े हो जाते हैं या बिखर जाते हैं।

रोकथाम

सरसों की फसल में झुलसा, झुलसा एवं सफेद रोल रोग के लक्षण दिखाई देते ही कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50 डब्लूपी या मैंकोजेब 75% डब्लूपी 2 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें। इस छिड़काव को आवश्यकतानुसार 20 दिन के अंतराल पर दोहराएँ। सफेद सड़न रोग के नियंत्रण के लिए कैराथेन 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से तीसरा छिड़काव लाभकारी होता है।

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